आचार्य महाश्रमण जी
उपासक श्रेणी के भाई बहन पर्युषण आराधना के लिए केंद्र यथानिर्णय जाते ही हैं किन्तु उनके पास केवल पर्युषण का ही कार्य नहीं है उनके पास पूरे वर्ष भर का कार्य है।
वे अपनी शक्ति का नियोजन कर स्वयं की निर्जरा कर सकते हैं और दूसरों की निर्जरा में भी सहायक बन सकते हैं। अपनी विशेषताओं के द्वारा वे दुसरों की धार्मिक सेवा करें। इससे उभयपक्षीय लाभ हो सकता है।
उपासक -उपसिकाओं के लिए धार्मिक सेवा उपादेय है। जिन क्षेत्रों में साधु -साध्वियों या समण -समणियां नहीं है ,वहां यदि उपासक -उपासिकाएं हैं तो वे धार्मिक गतिविधियों का संचालन कर सकते हैं -
1. सामायिक, प्रार्थना, अर्हत वंदना करवा सकते हैं।
2. संभव हो तो प्रतिदिन अन्यथा पाक्षिक प्रतिक्रमण का उपक्रम करवा सकते हैं।
3. कोई संघीय दिवस या संघीय कार्यक्रम हो तो उसमें अपनी उपस्थिति अथवा यथायोग्य मार्गदर्शन दे सकते हैं।
4. प्रेरणा के द्वारा तपस्या का अच्छा क्रम चलवा सकते हैं।
5. तपस्वी भाई बहनों को स्वाध्याय आदि के द्वारा आध्यात्मिक सहयोग दे सकते हैं।
6. ज्ञानशाला में प्रशिक्षण की जरुरत हो तो उसमें अपना योगदान दे सकते हैं।
7. जैन विद्या का अध्यापन करवा सकते हैं।
8. कभी-कभी आसपास के गावों में भी व्याख्यान आदि कार्यक्रम कर सकते हैं।
इस प्रकार उपासक -उपासिकाएं अपने -अपने क्षेत्र में धर्मोद्योत करने का प्रयास कर सकते हैं। उपासक श्रेणी तेरापंथी महासभा की एक गतिविधि है। तेरापंथी सभाएं भी यथोचित रूप से उपासक-उपासिकाओं द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रम या उपक्रम में अपना यथासंभव सहयोग कर सकते हैं।